लायब्रेरी में जब जानेमाने लेखक श्री खुशवन्त सिंह का अंग्रेजी नोवेल ‘The Company of Women’ हिन्दी अनुवाद (edition- 2003) हरिमोहन शर्मा ‘औरते ‘उपन्यास देखा तो फटाक से उठा लिय। इसके पहेले खुशवन्त सिंह का तो नहीं मगर एक-दो हिन्दी पुस्तक पढ़ा है। एक ‘सरदार पटेल’ पे था और एक ‘राम मनोहर लोहिया के विचार’ नामक था। जैसा के ये ब्लॉग-पोस्ट से ही मालुम हो जाएगा की मेरी हिन्दी कैसी है? ( बात तो ऐसे करता हु जैसे की बाकी भाषाओं का मास्टर हु !?!?) तो उन पुस्तको जिनके बारेमें थे उस वजह से पसंद करता था लेकिन गुजरातीमें जो ‘जमना’ कहेते है ऐसा ‘जमा’ नहीं! इसलिए सोचा के हमारी (याने मेरी) औकात के मुताबिक़ ही भाषा-पुस्तक का चयन करना चाहिए !!
अब (खुशवन्त सिंह का उपन्यास) ‘औरते ‘ के बारेमे बात करू तो जिस तरह का खुशवन्त सिंह का नाम-काम सूना था, लगा के औरतो के बारेमें होगा, मगर सच तो ये है की ये तो हमारे गुजराती के कुछ लेखक के लेख जैसा हुव… बाहर कुछ ओर और अन्दर कुछ ओर ! ‘औरते ‘ एक ऐसे पुरुष की कहानी है जो कोई भी, मानो के हर कोई (हिन्दुस्तानी) पुरुष ऐसा ही होता है ! शुरू शुरू में तो लगा की कोई एकदम चिप क्लास की ‘रंगीन’ कहानियाँ पढ़ रहा हु, मगर हो सके तब तक मै धीरे-धीरे, टूकडे टूकडे में ही सही लेकिन पुस्तक पूरा करने का प्रयास करता ही हु. पूरा पुस्तक पढ़ने के बाद ये अदालत इस नतीजे पे पहोची है की न पढो या पढो दोनों में ही कोई हर्ज नहीं !
जैसा की बुक-रिव्यू के बारे में मेरी आदत है, मै ‘स्टोरी’ नहीं कहे देता . . . लेकिन मुझे जो जो पसंद आये वो क्वोट-विचार ‘कोपि -पेस्ट ‘ किये देता हु . इसलिए इस पुस्तकमें भी मुझे (ऑलमोस्ट) हर धर्म के बारे में लिखा है, वो अच्छा लगा, और ख़ास तो गंगा-हरिद्वार के बारेमें जो छुट पुट पढ़ा है उससे वह जाने का तीन साल से टल रहा है उसके लिए उतावला-व्याकूल हो रहा है।
अब मै यहाँ पर ही अटकता हूँ और जो विचार, लाइन्स मुझे पसंद आयी वो यह –
- मोहन इस बात का कायल अवश्य था कि कभी-कभी इस प्रकार के अवैद्य यौन-संबंधो से कोई वैवाहिक सम्बन्ध नष्ट होने के कगार पर न पहुंचे। उसके विपरीत, ऐसे यौन-सम्बन्ध कभी-कभी ऐसे वैवाहिक संबंधो को, जहाँ पति अपनी पत्नी को उस मात्रा में यौन-सुख प्रदान नहीं कर पाता, जितनी की उसे अपेक्षा रहती है, सुद्रढ़ बनाने में भी सहायक सिध्ध होते है। उसकी द्रष्टि में अवैद्य यौन-संबंधो को सरासर लज्जाजनक मानकर उसकी निन्दा करना मूर्खतापूर्ण है, क्योंकी वे कभी-कभी समाप्तप्राय वैवाहिक-संबंधो को टूटने से बचा लेते है।
- मोहन कभी आत्मचिन्तक नहीं था लेकिन इस तूफानी विवाह ने उसे विवाह और प्रेम के मामले में छोता-मोटा दार्शनिक बना दिया था। उसने यह जान लिया था की यह कहावत एकदम गलत है कि किसी स्वर्ग में बैठा कोई देवता विवाहों के बारे में अन्तिम निर्णय लेता है। इसके बरखिलाफ, सच्चाई यह है कि दुबियावी कारणों के तहत विवाहों का निर्णय दुनिया में दुनिया के लोग ही करते है, और इस मामले में पहला महत्त्व धन को दिया जाता है, भले ही वह सम्पति के रूप में हो , लाभदायक व्यापार के रूप में हो , या ऊँची कमाई वाली नौकरी के रूप में हो।
- मूलतः स्त्रियों के शरीर की बनावट एक-सी होती है, लेकिन पुरुष हर स्त्री से विमोहित और मुग्ध होता है . . . .
- विवाहित स्त्रियो को बिना किसी प्रत्यक्ष सबूत के पता चल जाता है कि उनके पतिदेव परायी औरतो के साथ परम का चक्कर चल रहा है। उधर, विवाहित पुरुष अपने काम-धंधे में इतने अधिक व्यस्त रहेते है कि उन्हें सालों तक अपनी पत्नियो की बेवफाई का पता नहीं चलता।
- आदमियों में अन्तर समजने की समज तो होती नहीं, वे बस, जो सामने दिखाई देता है, उसे ले लेते है। . . . . . . . मर्द लोग वफादारी को कोई महत्व नहीं देते। वे एक औरत से जल्दी ही उब जाते है, और दूसरी औरत पर लाइन मारने लगते है, साले हरामी।
- मै यह जानना चाहती हूँ कि हिन्दू बन्दर को, हाथी को भी देवता क्यों मानते है, वृक्षों, सांपो और नदियों को भी पूजा क्यों करते है? वो लिंगम तक की पूजा करते है। योनि की पूजा करते है। . . . . . . वे प्लेग, खसरा और चेचक जैसे रोगों की देविंया बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
- क्या वे इस बात से इनकार करेगी की इस्लाम ने बहुत सी धारणाये और विचार यहूदी धर्म से उधार लिए है। उनका स्वागत करने वाला शब्द ‘सलाम वालेकुम’ हिब्रू भाषा के ‘शालोम अलेक’ से लिया गया है। उनकी पांच दैनिक नमाज़ों की प्रथा ‘जुडैक’ से ली गई है। हम प्राथना करने के लिए यरूशलम की और मुड़ते है, यह विचार भी उन्होंने हम से ही लिया है- फर्क इतना है की वे मक्का की और मुड़ते है। और यहुदियो की पुराणी प्रथा की नक़ल करते हुए वे भी अपने लडको की सुन्नत करते हे। यहूदी धारणा ‘कोशर ‘ से इस्लाम में ‘हराम’ और ‘हलाल’ शब्द शिखे। हम यहूदी लोगो में सुवर का गोश्त खाना इसलिए माना है, क्युकी वह गन्दा होता है। मुस्लमान लोग भी एसा ही मानते है। हम जानवरों को खाने के पहेले उसका खून निकालते है। हमारी नक़ल करके मुस्लमान भी एसा करते है। वे इन पैगम्बरों का आदर करते है जिनका आदर, यहूदी या इसाई पहेले से ही करते चले आ रहे है, इस्लाम के पास जो कुछ भी है, वह उसने यहूदी या इसाई धर्म से ही उधार लिया है।
- यास्मीन , तुम इतनी कट्टर क्यों हो? मुसलमानों से ज्यादा कट्टर लोग दुनिया के किसी धर्म में नहीं है। उनके नबी मुहम्मद साहब महानतम धार्मिक नेता थे। मुसलमान भी प्रबुध्ध लोग होते है, अल्लाह से डरने वाले और धर्म-परायण और नेक।
- अमेरिका में रहेने वाले सब हिन्दुस्तानी यह कहा करते थे, “एक दफा मैंने ढेर सारे डॉलर कमा लिए तो मई वापस ओने गाँव चला जाऊँगा। ” मगर वापस जाता कोई नहीं था।
- . . . पुरुषो को यद्यपि माहवारी नहीं होती, तथापि पचास साल की उम्र के बाद उन्हें रजोनिवृति होती है। इस उम्र में कुछ पुरुषो के व्यवहार में विचित्र परिवर्तन आ जाते हैं। रंडीबाजी में उनकी दिलचस्पी अचानक पैदा हो जाती हैं। वे जवान लडकियो को बुरी नजर से देखने लगते हैं, अश्लील बाते करने लगते हैं, और कभी-कभी सबके सामने नंगे तक हो जाते हैं। कुछ धार्मिक वृति के हो जाते हैं, और पूजा-पाठ और तीर्थयात्राओ में अपना वक्त बरबाद करने लगते हैं।
- अगर आप जीवित हिंदुत्व की अनुभूति करना चाहते हे , तो वह आपको न हिन्दुओ के धार्मिक ग्रंथो से प्राप्त होगा , न मंदिरो के दर्शन से, वह आपको प्राप्त होगा, हरिद्वार में सूर्यास्त पर होने वाली गंगा की आराधना में की जाने वाली आरती में।
- बुद्ध ने अपने प्रवचनों में ‘दुःख’ पर बहुत जोर दिया है। सर्वत्र व्याप्त बताया है दुःख को। बुद्ध का मानना था की कामनाओ पर नियंत्रण रख कर, दुःख को नष्ट किया जाता है। खाने , जीवन के हर भौतिक सुखो को भोगने, सेक्स से बचने पर दुःख से बचा जा सकता है। मुझे यह विधि स्वीकार्य नहीं है। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यह दुःख में नहीं सुख को प्रधानता देता है। सुभ और सौभाग्यादायी है – हिन्दू धर्म। हमारी संस्कारी – विधिओ में पिने , नाचने, जुआ खेलने , प्रेम करने और मौज करने आदि का कोई निषेध नहीं है। मै उसका समर्थन करता हु, उपवास करने, पश्चताप करने आदि का नहीं।
- मै जानती हु, और मै जिस पुरुष को भी, चाहू, फुसला सकती हु। वजह यह है की पुरुष सदा किसी भी लड़की को भोगने के लिए तैयार रहेते है।
- मेरे ख्याल से एक रात में शुरू और ख़त्म हुए प्रेम को एक रंगवाला प्रेम माना जायेगा। एक ही व्यक्ति के साथ प्रेम जब तक काफी समय पुराना न हो जाए, तब तक उसे पूर्ण , संपन्न और संतोषदायक नहीं माना जा सकता। और यह संतोष कब समाप्त हो जाता है, और उसका उतेजन कब ख़त्म हो जाता है। इसका आभास प्रेमी और प्रेमिका दोनों को हो जाता है। तब प्रेमी और प्रेमिका दोनों को बिना किसी गिले-शिकवे के उस प्रेम को अलविदा कह देना चाहिए और एक – दुसरे को नया प्रेमी या प्रेमिका के साथ नए सम्बन्ध स्थापित कर लेने चाहिए।
- अगर आप दुसरो से यौन – सम्बन्ध करते हुए पकडे जाते है, तो आप गुंडे है, लम्पट है, और अच्छे लोगो के साथ रहेने के काबिल नहीं है, लेकिन अगर किसीको आपके लम्पट और व्यभिचारी होने का पता नहीं चलता, तो आप सम्मानीय नागरिक है।
~ अमृतबिन्दु ~
“आदमी जब वृध्ध होने लगता है, उसकी कामेच्छा शरीर-मध्य से उठाकर ऊपर दिमाग की ओर बढ़ने लगती है। अपनी जवानी में वह जो करना चाहता था और अवसर के अभाव, घबडाहट या दूसरों की स्वीकृति न मिलाने के कारण नहीं कर सका, उसे वह अपने कलपना लोक में करने लगता है।
…….. इस का शीर्षक यह भी हो सकता था, ‘एक अस्सीसाला वृध्ध के दिवास्वप्न’ ।
इस उपन्यास में कोई भी पात्र वास्तविक नहीं हैं;वे सब मेरे सथियापे की उपज हैं।”
^ खुशवन्त सिंह (प्रस्तावना)